आठवणींची पण गंमत असते नं, कधी कारणानी मनात तरंग उमटवतील तर कधी अकारण ....बेवजह .... युंही
आज उनका खयाल आया
बेवजह युंही
खयालो में यादों का
सिलसिला चला
बेवजह युंही
कुछ केहना था उस वक्त
मगर ना कह पाये
अब गुजरे वक्त के सिरे
घिर आये बेमौसम
बेवजह युंही
काश तुम ही कुछ बोलते
काश की हम जवाब देते
काश ऐसा होता
या फिर
काश वैसा भी होता
कश्मकश खयालों की
बेवजह युंही
बेवक्त बारिश सी
ये बेमौसम यादे
बारिश तो फिर भी
ठंडक देती है
यादे तनहा एहसास
बेवजह युंही
लो फिर तेरी याद को
आदतन याद किया
उन्हे भुलाने का वादा भी
आदतन किया
याद करने भुलाने का
ये सिलसिला
बेवजह युंही
सोचा है अब की बार
ये किताब बंद कर देंगे
अब तो पन्नो में जो
पिपल का पत्ता था
वो सुख कर जाली बन गया
यादों का दामन छोड
लेटा है सुस्त सा किसी पन्ने के बिच
बेवजह युंही
- नेहा
2 comments:
खूप सुंदर!
रजत ब्लॉगवर स्वागत :)
धन्यवाद.
वाचत रहा. ब्लॉगला भेट देत रहा
Post a Comment